चराग-ओ-आफताब गूम, बड़ी हसीन रात थी,
शबाब की नकाब गूम, बड़ी हसीन रात थी।
मुझे पिला रहे थे वो कि ख़ुद ही शम्मा बुझ गयी,
गिलास गूम शराब गूम, बड़ी हसीन रात थी।
लिखा था जिस किताब में कि इश्क तो हराम है,
हुई वही किताब गूम, बड़ी हसीन रात थी।
लबों से लब जो मिल गए, लबों से लब ही सिल गए,
सवाल गूम जवाब गूम, बड़ी हसीन रात थी।
चराग-ओ-आफताब गूम बड़ी हसीन रात थी,
शबाब की नकाब गूम बड़ी हसीन रात थी॥
शायर: सुदर्शन फ़ाकिर
स्वर: जगजीत सिंह
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शबाब की नकाब गूम, बड़ी हसीन रात थी।
मुझे पिला रहे थे वो कि ख़ुद ही शम्मा बुझ गयी,
गिलास गूम शराब गूम, बड़ी हसीन रात थी।
लिखा था जिस किताब में कि इश्क तो हराम है,
हुई वही किताब गूम, बड़ी हसीन रात थी।
लबों से लब जो मिल गए, लबों से लब ही सिल गए,
सवाल गूम जवाब गूम, बड़ी हसीन रात थी।
चराग-ओ-आफताब गूम बड़ी हसीन रात थी,
शबाब की नकाब गूम बड़ी हसीन रात थी॥
शायर: सुदर्शन फ़ाकिर
स्वर: जगजीत सिंह
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Jagjit Singh, Gulzar
जहाँ तक मेरी जानकारी है.. इस ग़ज़ल को गुलज़ार साहब ने नहीं.. सुदर्शन फ़ाकिर साहब ने लिखा है.. मेरी फेवरेट है..
ReplyDeleteकुश जी, आप की जानकारी बिल्कूल सही है. मैंने सुदर्शन फ़ाकिर साहब का नाम लिख दिया है. धन्यवाद!
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