यह दौलत भी ले लो, यह शौहरत भी ले लो भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी मगर मुझ को लौटा दो बचपन का सावन वह कागज़ की कश्ती, वह बारीश का पानी
मुहल्ले की सब से पुरानी निशानी वह बुढिया जिसे बच्चे कहते थे नानी वह नानी की बातों में परियों का डेरा वह चेहरे की झुरियों में सदियों का फेरा भुलाएँ नहीं भूल सकता है कोई वह छोटी सी रातें, वह लंबी कहानी
कडी धूप में अपने घर से निकलना वह चिडिया, वह बुलबूल, वह तितली पकडना वह गुडिया की शादी पे लडना झगडना वह झूलों से गिरना, वह गिर के संभलना वह पीतल के छल्लों के प्यारे से तोहफे वह टूटी हुयी चूडियों की निशानी
कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जाना घरौंदे बनाना, बनाकर मिटाना वह मासूम चाहत की तसवीर अपनी वह ख्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी ना दुनिया का गम था, न रिश्तों के बंधन बडी खूबसूरत थी वह जिंदगानी
यह दौलत भी ले लो, यह शौहरत भी ले लो भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी मगर मुझ को लौटा दो बचपन का सावन वह कागज़ की कश्ती, वह बारीश का पानी
कोणास ठाऊक कसा पण सिनेमात गेला ससा सश्याने हलविले कान, घेतली सुंदर तान ... सा नि ध प म ग रे, सा रे ग म प sss दिग्दर्शक म्हणाला "वा वा", ससा म्हणाला "चहा हवा!"
कोणास ठाऊक कसा पण सर्कशीत गेला ससा सश्याने मारली उडी, भर भर चढला शिडी विदूषक म्हणाला "छान छान", ससा म्हणाला "काढ पान!"
कोणास ठाऊक कसा पण शाळेत गेला ससा सश्याने म्हंटले पाढे ... बे एकं बे बे दोनी चार बे त्रिक सहा, बे चौक आsssठ सश्याने म्हंटले पाढे घडघड वाचले धडे गुरूजी म्हणाले "शाब्बास", ससा म्हणाला "करा पास!"