Sunday, April 26, 2009

mujhse biChad ke - Jagjit Singh


मुझ से बिछड के खुश रहते हो
मेरी तरह तुम भी झूठे हो

इक टहनी पे चाँद टिका था
मैं यह समझा तुम बैठे हो

उजले उजले फूल खिले थे
बिल्कुल जैसे तुम हसते हो

तुम तनहा दुनिया से लडोगे
बच्चों सी बातें करते हो

मुझ से बिछड के खुश रहते हो ...

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स्वर: जगजीत सिंह (सहेर)

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saher

Saturday, April 25, 2009

yeh daulat bhi le lo - Jagjit Singh


यह दौलत भी ले लो, यह शौहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी
मगर मुझ को लौटा दो बचपन का सावन
वह कागज़ की कश्ती, वह बारीश का पानी

मुहल्ले की सब से पुरानी निशानी
वह बुढिया जिसे बच्चे कहते थे नानी
वह नानी की बातों में परियों का डेरा
वह चेहरे की झुरियों में सदियों का फेरा
भुलाएँ नहीं भूल सकता है कोई
वह छोटी सी रातें, वह लंबी कहानी

कडी धूप में अपने घर से निकलना
वह चिडिया, वह बुलबूल, वह तितली पकडना
वह गुडिया की शादी पे लडना झगडना
वह झूलों से गिरना, वह गिर के संभलना
वह पीतल के छल्लों के प्यारे से तोहफे
वह टूटी हुयी चूडियों की निशानी

कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जाना
घरौंदे बनाना, बनाकर मिटाना
वह मासूम चाहत की तसवीर अपनी
वह ख्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
ना दुनिया का गम था, न रिश्तों के बंधन
बडी खूबसूरत थी वह जिंदगानी

यह दौलत भी ले लो, यह शौहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी
मगर मुझ को लौटा दो बचपन का सावन
वह कागज़ की कश्ती, वह बारीश का पानी

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स्वर: जगजीत सिंह

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वो कागज की कश्ती, yeh doulat bhi le lo

hum tere shahar mein aaye hain - Ghulam Ali


हम तेरे शहर में आयें हैं मुसाफिर की तरह
सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे ...

मेरी मंजील है कहाँ, मेरा ठिकाना है कहाँ?
सूबह तक तूझ से बिछड कर मुझे जाना है कहाँ?
सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे ...

अपनी आंखों में छूपा रखे हैं जुगनू मैंने
अपनी पलकों पे सजा रखे हैं आंसू मैंने
मेरी आंखों को भी बरसात का मौका दे दे ...

आज की रात मेरा दर्द-ऐ-मुहब्बत सुन ले
कपकपाते हुए होठों की शिकायत सुन ले
आज इज़हार-ऐ-ख़यालात का मौका दे दे ...

भूलना था तो ये इकरार किया ही क्यों था?
बेवफा तू ने मुझे प्यार किया ही क्यों था?
सिर्फ़ दो चार सवालात का मौका दे दे ...

हम तेरे शहर में आयें हैं मुसाफिर की तरह
सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे ...

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गीत: कैसर उल जाफरी
स्वर: गुलाम अली

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Ghulam Ali, Qaiser Ul Jafri, hum tere shahar mein aaye hain musafir ki tarah


Saturday, April 11, 2009

saanga kasa jagaayach - Mangesh Padgaonkar


सांगा कसं जगायचं?
कण्हत कण्हत की गाणं म्हणत
तुम्हीच ठरवा!

डोळे भरून तुमची आठवण
कोणीतरी काढतंच ना?
ऊन ऊन दोन घास
तुमच्यासाठी वाढतंच ना?
शाप देत बसायचं की दुवा देत हसायचं
तुम्हीच ठरवा!

काळ्याकुट्ट काळोखात
जेंव्हा काही दिसत नसतं
तुमच्यासाठी कोणीतरी
दिवा घेऊन ऊभं असतं
काळोखात कुढायचं की प्रकाशात उडायचं
तुम्हीच ठरवा!

पायात काटे रुतून बसतात
हे अगदी खरं असतं,
आणि फुलं फुलून येतात
हे काय खरं नसतं?
काट्यांसारखं सलायचं की फुलांसारखं फुलायचं
तुम्हीच ठरवा!

पेला अर्धा सरला आहे
असं सुद्धा म्हणता येतं
पेला अर्धा भरला आहे
असं सुद्धा म्हणता येतं
सरला आहे म्हणायचं की भरला आहे म्हणायचं
तुम्हीच ठरवा!

सांगा कसं जगायचं?
कण्हत कण्हत की गाणं म्हणत
तुम्हीच ठरवा!

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शब्द: मंगेश पाडगांवकर

bebasi jurm hai - lyrics


बेबसी जुर्म है, हौसला जुर्म है
जिंदगी तेरी इक इक अदा जुर्म है ॥

ऐ सनम तेरे बारे में कुछ सोचकर
अपनी बारे में कुछ सोचना जुर्म है ॥

याद रखना तूझे मेरा इक जुर्म था
भूल जाना तूझे दूसरा जुर्म है ॥

क्या सितम हैं कि तेरे हसीं शहर में
हर तरफ गौर से देखना जुर्म है ॥

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शायर:
स्वर: जगजीत सिंह
अल्बम: In Search

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Sunday, April 05, 2009

konas thauk kasa

कोणास ठाऊक कसा पण सिनेमात गेला ससा
सश्याने हलविले कान, घेतली सुंदर तान ... सा नि ध प म ग रे, सा रे ग म प sss
दिग्दर्शक म्हणाला "वा वा", ससा म्हणाला "चहा हवा!"

कोणास ठाऊक कसा पण सर्कशीत गेला ससा
सश्याने मारली उडी, भर भर चढला शिडी
विदूषक म्हणाला "छान छान", ससा म्हणाला "काढ पान!"

कोणास ठाऊक कसा पण शाळेत गेला ससा
सश्याने म्हंटले पाढे ... बे एकं बे बे दोनी चार बे त्रिक सहा, बे चौक आsssठ
सश्याने म्हंटले पाढे घडघड वाचले धडे
गुरूजी म्हणाले "शाब्बास", ससा म्हणाला "करा पास!"

कोणास ठाऊक कसा पण शाळेत गेला ससा

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गीत: राजा मंगळवेढेकर
स्वर: शमा खडे
संगीत: पं. श्रीनिवास खळे

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Wednesday, April 01, 2009

to kya baat ho...

बेहोश पडे हम सोचते हैं कि
इक सपना दिख जाये तो क्या बात हो ...

फूलों के संग इक खिलता चेहरा
जो मुस्कराये तो क्या बात हो ... ||

वो नाजूक हथेली आँगन हमारे
मेंहदी भर आये तो क्या बात हो ...

हाँथों में सजे खिलखिलाते कंगन
गुनगुनायें इधर भी तो क्या बात हो ... ||

परदानशीन का हटकर वो परदा
चाँद दिख जाये तो क्या बात हो ...

जालिम ये नजर इस प्यासे दिल के
पार हो जाये तो क्या बात हो ... ||

हाय... ये घने लहेराते गेसू
तनिक छाँव दिलाये तो क्या बात हो ...

इन लब्जों का झरना सुनसान बगीचा
जन्नत बनाए तो क्या बात हो ... ||

बल खाती जवानी सपने में मुझ को
हसीं सफर ले जाये तो क्या बात हो ...

ऐ माशूका तेरे ज़ानों पे आखरी
बीत जाये दो लम्हें तो क्या बात हो ... ||

पल भर का सपना पल भर के लिए
उनके सपने में आये तो क्या बात हो ...

पल भर की कहानी पल भर में कोई
उनको सुनाये तो क्या बात हो ... ||

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