Wednesday, April 01, 2009

to kya baat ho...

बेहोश पडे हम सोचते हैं कि
इक सपना दिख जाये तो क्या बात हो ...

फूलों के संग इक खिलता चेहरा
जो मुस्कराये तो क्या बात हो ... ||

वो नाजूक हथेली आँगन हमारे
मेंहदी भर आये तो क्या बात हो ...

हाँथों में सजे खिलखिलाते कंगन
गुनगुनायें इधर भी तो क्या बात हो ... ||

परदानशीन का हटकर वो परदा
चाँद दिख जाये तो क्या बात हो ...

जालिम ये नजर इस प्यासे दिल के
पार हो जाये तो क्या बात हो ... ||

हाय... ये घने लहेराते गेसू
तनिक छाँव दिलाये तो क्या बात हो ...

इन लब्जों का झरना सुनसान बगीचा
जन्नत बनाए तो क्या बात हो ... ||

बल खाती जवानी सपने में मुझ को
हसीं सफर ले जाये तो क्या बात हो ...

ऐ माशूका तेरे ज़ानों पे आखरी
बीत जाये दो लम्हें तो क्या बात हो ... ||

पल भर का सपना पल भर के लिए
उनके सपने में आये तो क्या बात हो ...

पल भर की कहानी पल भर में कोई
उनको सुनाये तो क्या बात हो ... ||

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