Saturday, April 25, 2009

hum tere shahar mein aaye hain - Ghulam Ali


हम तेरे शहर में आयें हैं मुसाफिर की तरह
सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे ...

मेरी मंजील है कहाँ, मेरा ठिकाना है कहाँ?
सूबह तक तूझ से बिछड कर मुझे जाना है कहाँ?
सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे ...

अपनी आंखों में छूपा रखे हैं जुगनू मैंने
अपनी पलकों पे सजा रखे हैं आंसू मैंने
मेरी आंखों को भी बरसात का मौका दे दे ...

आज की रात मेरा दर्द-ऐ-मुहब्बत सुन ले
कपकपाते हुए होठों की शिकायत सुन ले
आज इज़हार-ऐ-ख़यालात का मौका दे दे ...

भूलना था तो ये इकरार किया ही क्यों था?
बेवफा तू ने मुझे प्यार किया ही क्यों था?
सिर्फ़ दो चार सवालात का मौका दे दे ...

हम तेरे शहर में आयें हैं मुसाफिर की तरह
सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे ...

*** ***

गीत: कैसर उल जाफरी
स्वर: गुलाम अली

*** ***


*** ***
Ghulam Ali, Qaiser Ul Jafri, hum tere shahar mein aaye hain musafir ki tarah


5 comments:

  1. Very nice ghazal, this one and 'Itna toota hun ki...' are my faavs.

    ReplyDelete
  2. बहुत ही अच्छी ग़ज़ल है आप को बहुत बहुत धन्यवाद्
    गुलाम अली जी

    ReplyDelete
  3. heat of u SIR.......for the beautifull #GAZAL ......<3 <3

    ReplyDelete

Please note that your comment will go live immediately after you click 'Post Comment' button and after that you will not be able to edit your comment. Please check the preview if you need.

You can use some HTML tags, such as <b>, <i>, <a> etc.