Saturday, May 09, 2009

yeh dil yeh paagal dil meraa by Ghulam Ali

This beautiful Urdu gazal has some words which have kept me guessing about what they stand for and also have made me wonder if I have spelled them correctly. I have highlighted them with red colour. I will be grateful if someone tells me the significance and the correct spelling of these words through the comment box displayed below the post.


ये दिल ये पागल दिल मेरा
क्यों बूझ गया? आवारगी ...
इस दश्त में इक शहर था
वो क्या हुआ? आवारगी ... ||१||

कल शब मुझे बेशक्ल की
आवाज ने चौंका दिया
मैंने कहा, 'तू कौन है?'
उसने कहा, 'आवारगी' ... ||२||

इक तू कि सदियों से मेरे
हमराह भी, हमराज भी
इक मैं कि तेरे नाम से
लायाश ना, आवारगी ... ||३||

ये दर्द की तन्हाईयाँ
ये दश्त का वीरां सफर
हम लोग तो उकता गए
अपनी सुना, आवारगी ... ||४||

लोगों भला ऊस शहर में
कैसे जियेंगे हम
जहाँ, हो जुर्म तन्हा सोचना
लेकिन सजा, आवारगी ... ||५||

इक अजनबी झौंके ने जब
पूछा मेरे ग़म का सबब
सेहरा की भीगी रेत पर
मैंने लिखा, आवारगी ... ||६||

कल रात तन्हा चाँद को
देखा था मैंने ख़्वाब में
मुहसीन मुझे रास आयेगी
शायद सदा, आवारगी ... ||७||

ये दिल ये पागल दिल मेरा
क्यों बूझ गया? आवारगी ...
इस दश्त में इक शहर था
वो क्या हुआ? आवारगी ... ||

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स्वर : गुलाम अली

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ye dil ye pagal dil mera

1 comment:

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