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Saturday, April 25, 2009

yeh daulat bhi le lo - Jagjit Singh


यह दौलत भी ले लो, यह शौहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी
मगर मुझ को लौटा दो बचपन का सावन
वह कागज़ की कश्ती, वह बारीश का पानी

मुहल्ले की सब से पुरानी निशानी
वह बुढिया जिसे बच्चे कहते थे नानी
वह नानी की बातों में परियों का डेरा
वह चेहरे की झुरियों में सदियों का फेरा
भुलाएँ नहीं भूल सकता है कोई
वह छोटी सी रातें, वह लंबी कहानी

कडी धूप में अपने घर से निकलना
वह चिडिया, वह बुलबूल, वह तितली पकडना
वह गुडिया की शादी पे लडना झगडना
वह झूलों से गिरना, वह गिर के संभलना
वह पीतल के छल्लों के प्यारे से तोहफे
वह टूटी हुयी चूडियों की निशानी

कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जाना
घरौंदे बनाना, बनाकर मिटाना
वह मासूम चाहत की तसवीर अपनी
वह ख्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
ना दुनिया का गम था, न रिश्तों के बंधन
बडी खूबसूरत थी वह जिंदगानी

यह दौलत भी ले लो, यह शौहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी
मगर मुझ को लौटा दो बचपन का सावन
वह कागज़ की कश्ती, वह बारीश का पानी

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स्वर: जगजीत सिंह

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वो कागज की कश्ती, yeh doulat bhi le lo

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