हम तेरे शहर में आयें हैं मुसाफिर की तरह
सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे ...
मेरी मंजील है कहाँ, मेरा ठिकाना है कहाँ?
सूबह तक तूझ से बिछड कर मुझे जाना है कहाँ?
सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे ...
अपनी आंखों में छूपा रखे हैं जुगनू मैंने
अपनी पलकों पे सजा रखे हैं आंसू मैंने
मेरी आंखों को भी बरसात का मौका दे दे ...
आज की रात मेरा दर्द-ऐ-मुहब्बत सुन ले
कपकपाते हुए होठों की शिकायत सुन ले
आज इज़हार-ऐ-ख़यालात का मौका दे दे ...
भूलना था तो ये इकरार किया ही क्यों था?
बेवफा तू ने मुझे प्यार किया ही क्यों था?
सिर्फ़ दो चार सवालात का मौका दे दे ...
हम तेरे शहर में आयें हैं मुसाफिर की तरह
सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे ...
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गीत: कैसर उल जाफरी
स्वर: गुलाम अली
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Ghulam Ali, Qaiser Ul Jafri, hum tere shahar mein aaye hain musafir ki tarah
Very nice ghazal, this one and 'Itna toota hun ki...' are my faavs.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी ग़ज़ल है आप को बहुत बहुत धन्यवाद्
ReplyDeleteगुलाम अली जी
heat of u SIR.......for the beautifull #GAZAL ......<3 <3
ReplyDeletevery nice gazal...lv it
ReplyDelete👍
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