तेरे खुशबू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे?
प्यार में डूबे हुये ख़त मैं जलाता कैसे?
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे?
जिन को दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा,
जिन को इक ऊम्र कलेजे से लगाए रखा,
दिन जिन को जिन्हें इमान बनाए रखा ...
जिन का हर लब्ज मुझे याद पानी की तरह,
याद थे मुझ को जो पैगाम-ए-जुबानी की तरह,
मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह ...
तूने दुनिया की निगाहों से जो बचकर लिखे,
साल-हा-साल मेरे नाम बराबर लिखे,
कभी दिन में तो कभी रात को उठकर लिखे ...
तेरे खुशबू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे ...
प्यार में डूबे हुये ख़त मैं जलाता कैसे ...
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे ...
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ,
आग बहते हुये पानी में लगा आया हूँ।।
*** ***
शायर :
स्वर : जगजीत सिंह
*** ***
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ग़ज़ल, नज्म, Revival With Jagjit Singh, 1993
प्यार में डूबे हुये ख़त मैं जलाता कैसे?
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे?
जिन को दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा,
जिन को इक ऊम्र कलेजे से लगाए रखा,
दिन जिन को जिन्हें इमान बनाए रखा ...
जिन का हर लब्ज मुझे याद पानी की तरह,
याद थे मुझ को जो पैगाम-ए-जुबानी की तरह,
मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह ...
तूने दुनिया की निगाहों से जो बचकर लिखे,
साल-हा-साल मेरे नाम बराबर लिखे,
कभी दिन में तो कभी रात को उठकर लिखे ...
तेरे खुशबू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे ...
प्यार में डूबे हुये ख़त मैं जलाता कैसे ...
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे ...
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ,
आग बहते हुये पानी में लगा आया हूँ।।
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शायर :
स्वर : जगजीत सिंह
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ग़ज़ल, नज्म, Revival With Jagjit Singh, 1993